लेखनी कविता - वां उस को हौल-ए-दिल है तो यां मैं हूं शरम-सार - ग़ालिब
वां उस को हौल-ए-दिल है तो यां मैं हूं शरम-सार / ग़ालिब
वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार
यानी ये मेरी आह की तासीर से न हो
अपने को देखता नहीं ज़ौक़-ए-सितम को देख
आईना ता-कि दीदा-ए-नख़चीरर से न हो